भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठिकाणो / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीं हुवै ठिकाणो जरूरी
पण मिनख री पिछाण हुवै ठिकाणो
ठिकाणै रो कांई
बदळतो रैवै
मिनख रै सागै-सागै चालै
डाक रो ठिकाणो।

जिका कागद बेरंग आवै
बै म्हारा हुवै
बिना ठिकाणै रो कागद
म्हारै ठिकाणै आवै।

बां कागदां नै
उणियारो देवण सारू
डाकियो म्हारै ठिकाणै रा सैनाण करै
अर म्हारै ठिकाणै भेजै
जठै ई म्हैं होवूं।

इसड़ा कागदां नै नीं बांचै कोई
म्हैं उणां नै खोलूं, अर
पाछा जबाब देवूं बांरै खातर
अेक ठिकाणै माथै।