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ठीक सत्र से पहले / नईम

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ठीक सत्र से पहले मौसम,
अध्यादेश निकाल रहा है।
          क्रूर काल तानाशाह-सा
          पीठें देकर परम्परा को,
          किरणों की धारा-दर-धारा
          फाँस रहा है वसुंधरा को;
कीचड़ भरे कुएँ प्यासों के
शासक सूर्य खँगाल रहा है।
          ये चिंदी चिंदी-से बादल
          खेल रहे हैं आँखमिचौनी,
          छाया मँहगी हुई धूप से,
          तन से चिपटी उमस घिनौनी;
फरियादी धरती का क़ातिल
यह आकाश बहाल रहा है।
          निर्वृक्षी डूँगर पठार के
          भ्रष्ट तांत्रिक-से अचेत हैं।
          अग्नि स्वजन की देकर लौटे
          पुरजन, परिजन रहे खेत हैं;
अंधे बहुमत-सा अषाढ़ ये
मद-आवेश निकाल रहा है।
          ठीक सत्र से पहले मौसम,
         अध्यादेश निकाल रहा है।
सूरज जैसा कामदार, पर
काम न आई किरन-बुहारू,
          महामारियों की चपेट में
          दिल्ली हो या गाँव लुहारू;
कैसे मानूँ अंधकार में
यह नेतृत्व मशाल रहा है!
          ठीक सत्र से पहले मौसम,
          अध्यादेश निकाल रहा है।