भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डडीर / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
ऐन्जा सें जे लौकै छौं
पातरऽ-पातरऽ
टांगुर-मांगुर डडीर
लगीच गेला पर
बनी जाय छै झरना
जे जीवन केॅ समेटी केॅ
चुरू में
उतरी रहलऽ छै
स्वर्ग सें धरती पर
झरी-झरी केॅ
जीवन बाँचै लेॅ
धरती केॅ
डडीर पारलऽ छै
जन्नेॅ-तन्नेॅ भाग्य ऽ के
खाली पहचानै के
जरूरत छै
कोनो न कोनो डडीर
हाथऽ में पारलऽ डडीरी सें
जरूर मेल खैतै
नजर ऐतै डडीर रकम
एकदम सोझऽ रास्ता
मंजिल ताँय पहुँचै केरऽ।