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डर / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
ज्यों-ज्यों छोटा होता जा रहा है सच
त्यों-त्यों बढ़ती जा रही है काग़ज़ की भूख
कागज की भूख है कविता
वह नहीं खा सकती पूरी रोटी
आदत हो गई है उसे आधी रोटी खाने की
डरता हूँ कोई छुड़ा न ले उससे आधी रोटी भी।