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डर / गोबिन्द प्रसाद

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जब बाज़ार गया था
तो इच्छाओं का खेत था
आँखों में
लहराता हुआ सपनों का समुद्र था
बाज़ार से लौटा हूँ अब
तो घर-गॄहस्थी की इच्छा
सपना बनकर सामने खड़ी है

मुझे डर है मेरे पीछे बाज़ार से लौटने वाला
मेरा पड़ोसी
सपना न बन जाए