भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डर / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
इन नयी मशीनों को
नहीं चाहिए इतने सारे हाथ
चार अंगुलियॉं ही काफी हैं
आग उगलने के लिए
परेशान हैं लाखों हाथ
आखिर क्या पकड़ेंगे
अब वे कल से?