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डर / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
आता है काला नक़ाब पहने
हाथ में चाक़ू या बंदूक लिए
शाम ढलते ही
और ले जाता है मुझे
जंगल की तरफ़
छोड़ देता है मुझे
किसी भूखे शेर के सामने
या मगरमच्छों भरे
तालाब के बीचों-बीच
या ले जाता है मुझे
किसी पहाड़ की चोटी पर
और गिरा देता है
अजगरों भरी गहरी खाई में
नहीं होता है वह कोई और
बल्कि होता है वह
मेरे साथ ही जन्म लेने वाला
मेरा डर.