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डर / सुन्दरचन्द ठाकुर
Kavita Kosh से
जैसे बचाया मुझे बचपन में
झूठ बोलते हुए कंपा दी आवाज़
चोरी करते हुए हाथ
कहाँ हो
आओ
बचाओ इस दुनिया को