डाक्टर पतझर / आन्द्रेय वाज़्नेसेंस्की
एक
जर्मन कैम्प के क़ैदियों में एक
प्रमुख चिकित्सक
हर रात क्लास्क में
ऐसी बीमारियों का परीक्षण करते हैं
जिन्हें आज तक किसी ने देखा नहीं।
शहतीर के ढेरों की तरह
मुर्दों को
ले जाती हैं गाड़ियाँ
सुबह ज़िन्द हो जाते हैं मुर्दें
और छेदने लगते हैं बन्दूकों से जंगल।
दो
डाक्टर पतझर,
ओह डाक्टर पतझ !
उठ गया है पर्दा
तुम्हारी पीठ से ऊपर
चेचक सरीखे दाग
कर दिए हैं गोलियों ने दीवार पर।
बैरक के ऊपर मण्डरा रही है चीख़ें
उनींदी-सी हैं पागल आँखें
कोट पर अंकित हो गए हैं
अन्धे पदकों के चिह्न ।
लवरादोर के महानुभाव
पाव्लोफ़, मेच्निकफ़, हिप्पोक्रेट्स
सब पिटते रहे, ख़तरे मोल लेते रहे
प्रयोगशालाओं में
किसलिए ?
इसलिए कि फ़ाँसी के फ़न्दे से तीन मीटर की दूरी पर
ख़ुर्दबीन की पीली आँखों से
मौत से बाल-बाल बचते हुए
ढू्ँढ़ निकालें जीवन मृत्यु अणुओं में ?
कि तुम जो क़ब्रों के भीतर
पड़े हो ज़हर से प्रभावित,
तिगुनी प्रतिभा की ज़रूरत है इसके लिए
कि प्रेरणाएँ खींच सकें तुम्हें बाहर
संसार की ओर ।
और समापन की ध्वजाओं को फाड़कर
तुम चिल्ला नहीं सकोगे : खोज लिया है !
तख़्त से बचाते हुए अपनी खोपड़ी,
सो जाओ अब चैन से ।
(डाक्टर पतझर सो जाते हैं। इसी वक्त फ्लास्क से साँप की तरह झाग उठती है। उनमें से मैफ़िस्टाफ़ैलीज निकलता है। उसका चेहरा गोल और शेव किया हुआ है। उसके बाल फ़ौजी कट में बने हैं।)
मैफ़िस्टाफ़ैलीज
हेल, मृत्यु !
दोस्त, मैं आया हूँ तुम्हारे पास
एक नाजुक सुझाव लेकर।
जीव विज्ञान के सन्तुलन-बिन्दु पर
पहुँच गए हैं तुम्हारे हाथ,
ज़िन्दगी और मौत — बहुत गहरे हैं सवाल ।
उनसे खिलवाड़ करना
क्या ख़तरनाक नहीं है ?
तुम जैसे मानवतावादी चिकित्सा के लिए
कहीं अच्छा होता बीमारियों के बजाय
दवाइयों का आविष्कार करना ।
दूध की बोतलों की तरह सफ़ेद
चोगा पहने दुनिया भर के चिकित्सक
भर्त्सना करेंगे दम्भ सहित
तुम्हारे कारनामों की ।
कुदरत की हर चीज़ — चाँद, गाय, प्याज —
सबके बीच सामंजस्य है ।
लोकवादी
चुनाव कर रहे हैं अपने राजाओं-महाराजाओं का ।
मुझे भी तो नहीं है सन्तोष हर चीज़ पर
(फ़ाउस्ट का वह क़िस्सा तुम्हें याद होगा ही)
रोकना
वक्त को?
सम्भव है, जब भी चाहो ।
तुम देते हो छूट वर्जनाओं को भी ।
अणु की तरह तुम्हारी मौत आतिल-जैसी
अचानक विस्फोटित होती है महामारी में।
बहुत सजा लिया इन विषाणुओं को
आओ, अब चल दें
तहख़ाने की भट्टी की ओर।
वहाँ सस्ती दरों पर मुझे मिलता है माल
आयातित भोजन का आनन्द लेते हुए
आओ, फ़्लर्ट कर लें इस कमसिन मौत के साथ ।
तीनों आपस में बाँट खाएँगे
डिब्बे में बन्द खाने को ।
(खिड़की के पीछे से मुर्गा बाँग देता है ।)
मैफ़िस्टाफ़ैलीज
(झुँझलाहट में)
कु क डूँ ऊँ-ऊँ-ऊँ
कु क डूँ ऊँ-ऊँ-ऊँ
वक़्त हो गया है
अभिवादन कर लें प्रतिद्वन्द्वी का !
(छिप जाता है)
डाक्टर पतझर
(जागते हुए)
मिल रहे हैं पूर्व-निर्धारित संकेत । सब कुछ ठीक है
यानी सभी साथी गुरिल्ला टुकड़ी तक पहुँच गये हैं ।
बाँग दे, ओ मुर्गे !
कि यातनाओं का अन्त पास है ।
हमारा प्रयोग- ज़िन्दाबाद !
तीन
(डॉक्टर पतझर ख़ुर्दबीन में देख रहे है)
हमारी क़िस्मत में है नहीं देख पाना
जो कुछ दीखता है उसे
उसे तो नाशपाती तक का गूदा दिखाई देता है
दिखाई देती हैं समुद्र की अथाह तहें ।
पेड़ की छाल की तरह
उघाड़ता है वह हवा की भी छाल,
और घुसेड़ देता है खूबसूरत झींगों को
किटाणुओं की दुनिया में ।
फूलमालाओं की तरह गुँथे हुए
घूम रहे हैं नक्षत्र-समूह ।
हमें तो कुछ भी नज़र नहीं आता हवा में
और उसे फलों के रस की शीशी की तरह
सब कुछ लगता है घना और रंगीन ।
और ठीक भूमिगत रेलवे की तरह
तुम्हारे ख़ुश नथनों में
दौड़ लगा रही है जीवाणुओं की फ़ौज ।
उसे दिखाई देती है गुप्त प्रक्रियाएँ और उनके नेगेटिव्ज
जो चमकते नज़र आते हैं निकोटिन के बीच
ख़ून की बूँदों की तरह
टपक रहे हैं रबीनिया के पत्ते
बिखर गई है वीर बहूटियाँ इधर-उधर ।
ध्यान से रखते चलो अपने क़दम
कुचल न जाए कहीं उनका अदृश्य प्यार ।
सावधान !
बर्बर आदिम वनस्पतियाँ
आ रही हैं हमला करने के लिए
जल्दी करो, डॉक्टर,
चिल्लाओ… प्लेग !
तुम उसके गवाह हो,
लोगों को तो लगती है हवा स्वच्छ और निर्मल ।
(किसके प्रयोगशाला सहायक का हो गया है दिमाग ख़राब)
ग़लती से कह बैठा कुछ इनसान
बस, इसी से आरम्भ हुआ धर्मों का,
एक पल से
पूरे युग का ।
लोगों के दैनिक जीवन में
आँखें खोलने लगे थे
नवजात विषाणु हिटलरवाद के,
भिनभिना रहे थे
अणु रदीषिफ़ और अणु हेगल
और वे लाखों कवि
जो पैदा नहीं हुए थे प्रति-कन्याओं से ।
और मध्य में
दो ध्रुवीय चुम्बकों या नसों की तरह
काँप रहे थे
दो लिंगी कीट डिम्ब
जिसमें बन्द पड़ा था मृत्यु-जीवन ।
ट न न न...
चूजें के लिए — ज़िन्दगी, अण्डे के लिए — मौत-
ज़िन्दगी ।
ट न न न…
पहियों के नीचे
यह किसकी हुई ऐनक चकनाचूर ।
ट न न न…
कि ज़िन्दगी भाग रही है भेड़ियों की तरफ़
दाँतों में थामे मृत्यु-खरगोश ।
राकेटों में लेटी है मौत
ज़िन्दगी की उनमें क्या है गारण्टी ?
ज़िन्दगी का जन्म हुआ है अथाह गहराइयों में
पुकारा जाता है जिन्हें मौत के नामों से,
मृत्यु लाती है हमारे लिए
जीवन नामक व्यापार…
ट न न न…
ब्रह्माण्ड हो जाता है परिवर्तित छोटे-से बिन्दु में,
एक चिनगारी से बनता है प्रभात,
अणु संसार में है हमारा अन्त, हमारा आरम्भ ।
और तुम इस खेल में
उतर आये हो ब्रह्मा के विरुद्ध ।
फ़ौजियों की तरह शेव किए
मेरा यह डॉक्टर
निर्ममता को बदल रहा है करुणा में ।
कितना कष्टप्रद है यह
कि चेचक के टीके का पहला प्रयोग
अपने बेटे सरीखे नीली आँखों वाले सिग्नलमैन पर करना पड़े
और अचानक लगे
कि बीमारी होती जा रही है काबू से बाहर ?
मौत पैदा करने का
क्या हमें कोई अधिकार है ?
अचानक अणु आकार की यह मौत
विस्फोटित हो जाए
यदि महामारी के रूप में
और कहीं तुम्हारे नीचे ओपेनहाइमर
भालू की तरह फूहड़ तरीके से बैठा हो
परमाणु पर…
(उपसंहार : जिसमें लेखक की मुलाकात नायक से होती है ।)
तो डॉक्टर पतझर,
आखिर हमारी मुलाकात हो ही गई ।
तुम्हारे इस एक्स-रे कैबिन में
अपने पापों को बताना ही पड़ता है
किसी ने मेरी कुहनी को ठण्डे हाथों से छूकर
आगे बढ़ने का संकेत दिया है
और मैं ठण्ड में जम गया हूँ ।
डाक्टर पतझर ने सुनहरी आँखों से देखा
मेरे आर-पार !
मैंने पहचान लिया
मानवता को पहचानती इन आँखों को !
पतझर,
क्या देख रहे हो तुम, मेरे भीतर
मेरी वांछित या अवांछित ज़िन्दगी में ?
कहाँ है ? कैसे हैं ?
विनाश, उड़ानें, पाप
और कुचली हुई दर्दभरी दहलीज़ें ?
हम देर तक चाय पीते रहे
तुम्हारे दमघोंटू कमरे में
तकलीफ़देह है कालरों का कसाव
अपने हँसोड़ आँसुओं के बीच
तुमने दिखाए अपने एक्स-रे के कारनामे
ठीक चन्द्रमा की तस्वीरों की तरह
जिनमें खल रहा है अपने देश के राजचिह्न का न होना ।
निगल गए वोदका के साथ
औसत लम्बाई का काँटा
इस शख़्स ने तो पूरा मैडल ही निगल डाला ।
इसलिए कि बिछड़ न जाए
उस पर अंकित चेहरे से !
ओ मैडौना की मुस्कान — पेट की भूलभुलैया !
अपनी ज़िन्दगी से बेहतर प्यार करते
वेनिस निवासी ने तो निगल ही डाला रेडियो बल्ब ।
उसने कोशिश की थी
उसे प्लास से बाहर निकालने की ।
अपनी गति की स्वायत्तता को बचाते हुए
घण्टाघरों की घण्टियों की तरह
बज रही थीं घड़ियाँ सगौरव आँतों में ।
एक ने तो पूरी अलार्म घड़ी खा डाली
उसका वक़्त
भीतर से ही करता था
ज़हरीली घोषणाएँ ।
भले ही हम हों नम्र और नश्वर
लेकिन असाध्य हीरे की तरह
पक रहा है समय हमारे भीतर
शिशु की तरह
ठीक दिल के पास ।
और अचानक हाथी की तरह
जाग उठेंगे सम्मोहक स्वर
अद्वितीय काल के ।
काल
जो पसलियों की हड्डियों को जोड़ेगा
प्रलय के नगाड़े की तरह
स्वर्ग और पातालगंगा के स्वरों से ।
स्पास त्यौहार-सा यह काल
अगत्स्य के आश्रम की तरह
संकेत देगा तुम्हें
आगे फैले कपट-जालों का ।
तुम और रूस — एक हो।
ऊब गए हो तुम बिचौलियों से ।
सहोदर हैं — जन्म और मृत्यु,
इसी में है अन्तिम सुख ।
तब दर्द से सिहरता ब्लोक
घोषणा करता है बारह की ।
झरोखे से चिपकने के लिए
सिकुड़ गया छोकरा जैसे कूदने के लिए ।
मैं पैदा हुआ हूँ
इस निरभ्र नीलिमा के नीचे
ताकि रूस के दिगन्त को
मैं दे सकूँ स्वर ।
पीना ही पड़ेगा हमें
महाकाल का यह प्याला ।