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डूब चुके कितने अफ़साने / देवमणि पांडेय
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डूब चुके कितने अफ़साने इन आँखों के पानी में
नाम तलक न आया मेरा फिर भी किसी कहानी में
जीवन ऐसे गुज़र रहा है साए में दुख दर्दों के
जैसे फूल खिला हो कोई काँटों की निगरानी में
छीन लिया दुनिया ने सब कुछ फिर भी मालामाल रहा
जब-जब मुझको हँसते देखा लोग पड़े हैरानी में
किससे कीजे सच्ची बातें किसके आगे खोलें दिल
हर इंसान नज़र आता है शामिल बेईमानी में
दुनिया जिसको सुबह समझती तुम कहते हो शाम उसे
कुछ सच की गुंजाइश रक्खो अपनी साफ़ बयानी में
ख़ुद्ग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई दुनिया सारी
वर्ना सच्चा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में