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डूबल उतराइल / मोती बी.ए.
Kavita Kosh से
जब हम सागर में बूड़त-उतरात
बचे खातिर
कवनो थाह लगावतानी
त कहे वाला कहता-
हम मनबढ़इ करतानी
कहता कहता-
अपने मन के रोक
छपटा मति
धीरज राख
हम जबले ओकर बाति सूनतानी
तबले कई गच्चा खा चूकतानी
साँसि टँगा जातिबा
जीव तर-ऊपर होख लागता
कहे वाला कहि के चलि जाता
हम सागर में फेनू तरा जातानी
बूड़त उतरात छपटाए लागतानी
सागर थहावे लागतानी
सहारा बदे हाथ बढ़ावे लागतानी
का हम
तराइले रहि जाइबि
कबे उपराइब ना!
22.06.93