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ढपलू जी रोए / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
ढपलू जी स्कूल गए,
बस्ता घर पर भूल गए,
मैडम ने आकर डाँटा,
मारा हल्का-सा चाँटा,
ढपलू जी रोए आँ...ऊँ ।
मैं ’इछकूल’ नहीं जाऊँ ।
ढपलू जी बैठे खाने,
कच्ची मक्की के दाने,
खाकर पेट लगा दुखने,
चेहरा खिला लगा बुझने,
ढपलू जी रोए आँ...ऊँ ।
मैं ये भुत्ता न खाऊँ ।
ढपलू जी ने ढम-ढम कर,
ताल बजाया ढोलक पर,
मम्मी आई खींचे कान,
बोली- ’शोर न कर शैतान !’
ढपलू जी रोए आँ...ऊँ ।
मैं इस धोलक पल गाऊँ ।