भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तकलीफ मेरी ऐ मिरे आराम जाँ न पूछ / नज़ीर बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तकलीफ मेरी ऐ मिरे आराम जाँ <ref>आरामतलब जीवन</ref> न पूछ
कह अपनी सर गुज़श्त <ref>आपबीती</ref> मिरी दास्ताँ न पूछ

फुर्सत अगर मिली तो चला आऊँगा कभी
अपना पता बता मिरा नामो-निशाँ न पूछ

वो कौन सी जगह है जहाँ नक्श पा <ref>पैरो के निशान</ref> नहीं
गजरा किधर-किधर से मिरा कारवाँ न पूछ

हर तीर ने पलट के किया है मुझी पे वार
मुझसे मिरी रसाइए-आहो फुगाँ <ref>आह और रूदन से लगाव</ref> न पूछ

हस साँस में ’नजीर’ को याद आये है खुदा
किस हाल में है वारिसे शहरे बुताँ <ref>मूर्तियों के शहर का वारिस</ref> न पूछ

शब्दार्थ
<references/>