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तट अकेला हाथ बाँधे / कुमार रवींद्र

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डूबते आकाश से रुककर
          फिर नदी ने बात की
 
छाँव पेड़ों की
नहाते थम गयी
एक चिड़िया
हवा में उछली
अचानक जम गयी
 
याद आई थके जल को
          धूप की-बरसात की
 
सीढ़ियों ने आँख मूँदी
रेत पर
चुप हुए सब -
ताल-जंगल-खेत-घर
 
तट अकेला हाथ बाँधे
          सोचता है रात की