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तन की सुन्दरता क्या होगी / विमल राजस्थानी

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जब मन ही नहीं रहा सुन्दर, तन की सुन्दरता क्या होगी ?

जीवन तो बहता पानी है
मन यायावर, सैलानी है
जीवन से अलग, पृथक मन से-
तन का होना बेमानी है

मन का होना ही होना है, तन मन का सुगढ़ खिलौना हैं
मन ठौर-कुठौर न देखे तो मन की भास्वरता क्या होगी ?

कुविचार हृदय को छलते हैं
सुविचार दीप-सा जलते हैं
इस छलने-जलने को लेकर
हम जीवन पथ पर चलते हैं

हैं फूल यहाँ, काँटे भी हैं, घन-गर्जन, सन्नाटे भी हैं
लौ से पथ-पंक न सूखा तो गौरांग प्रखरता क्या होगी ?

ये सहज दूरियाँ पल भर में-
मन ही तो नापा करते हैं
तारे छूते हिम-शैल देख,
तन सिहरा-काँपा करते हैं

मन चाह रहा नभ को छूना, तन थका-थका, दूना-दूना
गिरि-श्रृंग न पद-तल चूमे तो कोरी विहृलता क्या होगी ?

मन एक चमकता दर्पण है
जीवन प्रतिबिम्बित होता है
आवरण नहीं, तन तो तल है
मन छल-छल निर्मल सोता है

बहते रहना ही जीवन है, लेना छलाँग ही यौवन है
ठहरे जल में सागर बनने वाली आकुलता क्या होगी ?

तन श्वेत-श्याम, मन उज्जवल हो
निर्मल जल मन, तन शतदल हो
तो सुन्दरतम यह भूतल हो
संसार न दुख का जंगल हो

बेला फूले, चम्पा फूले, साँसों पर मलय-सुरभि झूले
जीवन जब झूमे-गाये तक कलमुँही अमरता क्या होगी ??