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तनहाइयाँ-4 / शाहिद अख़्तर
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ख़ुदकलामी की भी
एक इंतहा होती है
मैंने हमेशा इससे परहेज किया
ख़ुदकलामी मैं क्यों करूँ भला
जब मेरी बात सुनने के लिए
मेरे पास मेरी तन्हाई है !