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तनी तनो / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
समय के उखड़ खाबर
अगर रिस्ता
करै के हो बराबर
तब तनी तनो,
समय आ गेलो हे
दिन नै गिनो
तोहर मन,
इहे तो हो
धरती के धन
तोरे मन पर
उगऽ हे घास,
तोर टंगल है
दुनियाँ भर के विस्वास
तोहर मन
लोहा के जवाब हो,
तोरा सामने
न कोय राजा
न नवाब हो
तों अपना के हीन समझऽ हा,
शत्रू के संगीन समझऽ हा
खाली हहर गेला हे,
राह में
चलते-चलते ठहर गेला हे
खुद चलो,
अउ दोसरो के चलबो,
फेर से
आजादी के मसाल जलबो
लड़ो,
जइसे लड़ला हल
बढ़ो
जैसे बढ़ला हल।