भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तन्तु / मुक्तावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करुना कन रस धन बरसि स्वाती संत प्रमान
उक्ति शुक्ति मुक्ताक कन करथु सदा अनुदान।
निरस विसद गुन संत मुख वचन अतूलहु तूल
कलपित अलपित तंतु मत गाँथल रुचि अनुकूल।
परा प्रेम मीराक लय याज्ञबल्क्य केर बोध
कर्म विवेकानन्द गत त्रिगुन तत्त्व मत सोध।
-- -- --
घर अनन्त वसुधा जनिक प्राणि मात्र परिवार
हरिक चाकरी करथि जे, से स्वतंत्र संसार