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तन्हाई के फ़न में कामयाब / तनवीर अंजुम
Kavita Kosh से
अपनी अज़ली आरज़ू के मुताबिक़
मैं बिल्कुल आज़ाद हो चुकी हूँ
हर ख़्वाहिश से
लालच से
ख़ौफ़ से
ग़म से
नफ़रत से
मैं चाहूँ तो रॉकिंग चेयर पर
सुब्ह से शाम कर सकती हूँ
या रात भर सफ़ेद कपड़े पर
रंग-बिरंग फूल काढ़ सकती हूँ
या जंगल में इतनी दूर जा सकती हूँ
कि वापस न आ सकूँ
या दाएरे में घूमते हुए
अपने आप को थका कर गिरा सकती हूँ
कभी न उठने के लिए
और ऐसे में
उन्होंने उसे भेज दिया है
जानबूझ कर
मेरी तन्हाई में ख़लल डालने के लिए
ताकि मिल जाए मुझे फिर कोई
नफ़रत करने के लिए
छोटी सी तो है वो
मगर नहीं डालने देती मुझे
अपनी तन्हाई में ख़लल
मुकम्मल तौर पर आज़ाद
मेरी नफ़रत से भी
मेरी असली वारिस
मगर मुझ से कहीं ज़ियादा कामयाब
तन्हाई के फ़न में