भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तपस्वी बैल / तलअत इरफ़ानी
Kavita Kosh से
सींग दायां हो कि बायाँ
बैल को तो,
जिस किसी सूरत, ज़मीं को
सर से ऊंचे थामना है।
कुछ कभी गर्दन बचाने की
अगर फुर्सत मिली भी
तो ज़मीं पर,
ज़लज़ला, सैलाब, तूफां, क्या न आया
और फ़िर कुछ आसमानी देवताओं ने,
उसे आ कर डराया ।
"यूँ न होना, यूँ न करना
अपनी हर हरकत से डरना।
वरना,
इस धरती के बाशिंदों की रूहें
चीख कर तुझ से लिपट जायेंगी
जिन की बद्दुआ से
ता अबद तुझ को जहन्नुम की
सुलगती आग में जलना पडेगा"!
तब से वह इक सींग पर धरती उठाये
दम बखुद सीधा खड़ा है,
बैल गोया वूँ नही तो यूँ जहन्नुम में पड़ा है