भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तब क्षण क्षण मधु-प्याले होंगे! / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
तब क्षण क्षण मधु-प्याले होंगे!
जब दूर देश उड़ जाने को
दृग-खंजन मतवाले होंगे!
दे आँसू-जल स्मृति के लघु कण,
मैंने उर-पिंजर में उन्मन,
अपना आकुल मन बहलाने
सुख-दुख के खग पाले होंगे!
जब मेरे शूलों पर शत शत,
मधु के युग होंगे अवलम्बित,
मेरे क्रन्दन से आतप के-
दिन सावन हरियाले होंगे!
यदि मेरे उड़ते श्वास विकल,
उस तट को छू आवें केवल,
मुझ में पावस रजनी होगी
वे विद्युत उजियाले होंगे!
जब मेरे लघु उर में अम्बर,
नयनों में उतरेगा सागर,
तब मेरी कारा में झिलमिल
दीपक मेरे छाले होंगे!