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तब तक समझूँ कैसे प्यार / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
(१)
तब तक समझूँ कैसे प्यार,
अधरों से जब तक न कराए
प्यारी उस मधुरस का पान,
जिसको पीकर मिटे सदा को
अपनी कटु संज्ञा का ज्ञान,
मिटे साथ में कटु संसार,
तब तक समझूँ कैसे प्यार
(२)
तब तक समझूँ कैसे प्यार।
बाँहों में जब तक न सुलाए
प्यारी, अंतरहित हो रात,
चाँद गया कब सूरज आया--
इनके जड़ क्रम से अज्ञात;
सेज चिता की साज-सँवार,
तब तक समझूँ कैसे प्यार।
(३)
तब तक समझूँ कैसे प्यार।
प्राणों में जब तक न मिलाए
प्यारी प्राणों की झंकार,
खंड़-खंड़ हो तन की वीणा
स्वर उठ जाएँ तजकर तार,
स्वर-स्वर मिल हों एकाकार,
तब तक समझूँ कैसे प्यार।