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तबके जवान अब भइले पुरनिया / मनोरंजन प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
अबहूँ कुहुकिएके बोले ले कोइलिया, नाचेला मगन होके मोर।
अबहुँ चमेली बेली फूले अधिरतिआ, हियरा में उठेला हिलोर।।
अबहूँ अँगनवाँ में खेलेला बलकवा, कौआ मामा चील्हिआ-चिल्होर।
अबहूँ चमकिएके चलेले तिरिअवा, ताकेले भुँइअवे के ओर।।
चोरी-चोरी अबो गोरी करेली कुलेलवा, चोरी-चोरी आवे चितचोर।
भूलि जाला सुधबुध कामकाज लोक-लाज, करेले जवानी जब जोर।।
दुनिया के रंग ढंग सब कुछ ऊहे बाटे, ओइसने बा जोर अउरी सोर।
कुछओ ना बदलल, हमहीं बदल गइलीं बदलल तोर अउरी मोर।।
तबके जवान अब भइले पुरनिआ, देहिआ भइल कमजोर।
याद जब आवेला पुरनका जमनवा, मानवा में होखेला ममोर।।
कुछ दिल अउरी धीरज धरु मनवा, जिनगी के दिन बाटे थोर।
पाकल-पाकल केसिआ में लागे ना करिखवा, रामजी से करु ई निहोर।।