तबीयत में न जाने ख़ाम / हंसराज 'रहबर'
बढ़ाता है तमन्ना आदमी आहिस्ता आहिस्ता
गुज़र जाती है सारी ज़िंदगी आहिस्ता आहिस्ता
अज़ल से सिलसिला ऐसा है गुंचे फूल बनते हैं
चटकती है चमन की हर कली आहिस्ता आहिस्ता
बहार-ए-जि़ंदगानी पर खज़ाँ चुपचाप आती है
हमें महसूस होती है कमी आहिस्ता आहिस्ता
सफ़र में बिजलियाँ हैं आँधियाँ हैं और तूफ़ाँ हैं
गुज़र जाता है उनसे आदमी आहिस्ता आहिस्ता
परेशाँ किसलिए होता है ऐ दिल बात रख अपनी
गुज़र जाती है अच्छी या बुरी आहिस्ता आहिस्ता
तबीयत में न जाने ख़ाम ऐसी कौन सी शै है
कि होती है मयस्सर पुख़्तगी आहिस्ता आहिस्ता
इरादों में बुलंदी हो तो नाकामी का ग़म अच्छा
कि पड़ जाती है फीकी हर खुशी आहिस्ता आहिस्ता
ये दुनिया ढूँढ़ लेती है निगाहें तेज़ हैं इसकी
तू कर पैदा हुनर में आज़री आहिस्ता आहिस्ता
तख़य्युल में बुलंदी औ' ज़बाँ में सादगी 'रहबर'
निखर आई है तेरी शायरी आहिस्ता आहिस्ता