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तमाम खेल तमाशों के दरमियान वही / असलम इमादी

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तमाम खेल तमाशों के दरमियान वही
वो मेरा दुश्मन-ए-जाँ यानी मेहरबान वही

हज़ार रास्ते बदले हज़ार स्वाँग रचे
मगर है रक़्स में सर पर इक आसमान वही

सभी को उस की अज़िय्यत का है यक़ीन मगर
हमारे शहर में है रस्म-ए-इम्तिहान वही

तुम्हारे दर्द से जागे तो उन की क़द्र खुली
वगरना पहले भी अपने थे जिस्म-ओ-जान वही

वही हुरूफ़ वही अपने बे-असर फ़िक़रे
वही बुझे हुए मौज़ू और बयानी वही