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तय किए सौ रास्ते / रमेश रंजक

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एक बेहतर ज़िन्दगी के वास्ते

वक़्त के कितने थपेड़े
जिस्म पर सहते रहे
हर घड़ी पाबन्दियों में
कुछ न कुछ कहते रहे

एक छोटी-सी उमर में
तय किए सौ रास्ते

सिर्फ़ 'मैं' को 'हम'
बनाने के लिए चलते रहे
दूरवर्ती कहकहों की
आँच में जलते रहे

आदमी ढूँढ़ा किए हम
धूल-धक्कड़ फाँकते

एक बेहतर ज़िन्दगी के वास्ते