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तलाश / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

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दिल में झाँको ज़रा ख़ुद को फिर तलाश करो
वो जिसे ढूँढ़ती रहती हो अपने दिल के क़रीब
वो जो उनवान है नज़्मों का है दिल में पैहम
वो जो फागुन में तितली है और बहार में गुल
वो जो बंसी में भी बसता है और बसंत में भी
वो जिसके नाम के आते ही लब लरज़ जाते हैं
वो जिसके हाथ की छुअन के लिए ज़ुल्फ़
बिखर-बिखर के परीशाँ तुझे कर जाती है
जिसका हर ख़्वाब है तसवीर का मानूस सा नक़्श
जिसका हर लफ़्ज़ धड़कता है दिल में रह-रहकर
जिसका हर दर्द अपना ग़म सा लगता है
वो अजनबी तुम्हारे ही दिल में रहता है
दिल में झाँको ज़रा उसको फिर तलाश करो।