तलाश / मोना गुलाटी
हमेशा झाड़ियों के ऊपर फैलता हुआ आकाश मेरे
ऊपर झुक आता है और उन्मादित हो उठता है
चेहरे का रंग !
पीले से हरे और हरे से लाल तनाव में रिसने से
कोई परिभाषा नहीं बनती। केवल मिट्टी का ढेला
आकार नहीं ले पाता और झुका रहता है
आकाश !
वह विश्वास
जो मैंने तुम्हारे कन्धों पर रख दिया था, किसी की
धरोहर नहीं था, न
चिकनी लाल मिट्टी की उपज था; वह मुझे सुरंग
खोदते हुए मिला था उजाले की तरह और
भविष्य बन गया था !
मैंने तुम्हें
रेंगती बैलगाड़ी और तेज़ दौड़ती सड़क से अलग
कच्चे पेड़ की फुनगी दी थी, जिसके रास्ते
तुम पाताल में धँस सकते थे !
बिखरे हुए नक्षत्रों को अपनी मुट्ठी में बन्द करने
के तेज़ से दीप्त हो सकते थे !
एक दोष मिट्टी का होता है
जो घुन की तरह चाटता है पर
दिखाई नहीं देता !
संज्ञाओ, क्रियाओं, विशेषणों के भीतर टूटने और
सुगबाने का मोह मैंने
शताब्दियों से छोड़ दिया है । कोई तमग़ा मेरे बालों
पर हाथ नहीं फेर सकता, कोई आकाँक्षा मेरे
कन्धों का बोझ नहीं बन सकती; मैंने
फिर सुरंग खोदनी शुरू कर दी है : सुरंग के
पार जाता हुआ आकाश मेरे कन्धों पर झुका
हुआ मस्तक है : मेरी
तलाश उसी तालाब में झाँकने की है, जहाँ कुछ
नहीं होता; केवल होता है
गहरा नीला आसमान और डूबता हुआ व्याप्त एकान्त
जो किसी का नहीं है : न मेरा
न तुम्हारा, न पगडण्डी से भटकी यात्राओं का !