भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तव अनन्त आशा का दीपक / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग जैतश्री-ताल धमार)
तव अनन्त आशा का दीपक अमर जला दो जीवनमें।
मरण-अनन्तर सुप्रभात हो तव पद-पंकज सेवनमें॥
ले लो सब आनन्द, और यह प्रीति गीति सब ले लो नाथ!।
भीतर-बाहर एकमात्र हो तुम ही मेरे जीवन-नाथ!॥