भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तहखानों तक / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
कोई ठंडी हवा का झोंका
आधी रात मेरे लहू में
अक्षर - अक्षर हो …
लिख जाता है किताब
कभी तो आ …
दिल के तहखानों तक
जिसकी टूटी सतरें जोड़
कोई नज़्म बना सकें …