भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तहाँ मुझ कमीन की कौन चलावै / दादू दयाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तहाँ मुझ कमीन की कौन चलावै।
जाका अजहूँ मुनि जन महल न पावै।।
स्यौ विरंचि नारद मुनि गाबे, कौन भाँति करि निकटि बुलावै।।1
देवा सकल तेतीसौ कोडि, रहे दरबार ठाड़े कर जोड़ि।।2
सिध साधक रहे ल्यौ लाई, अजहूँ मोटे महल न पाइ।।3
सवतैं नीच मैं नांव न जांनां, कहै दादू क्यों मिले सयाना।।4