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तांडव / अर्जुनदेव चारण
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तांडव ई
होवै
एक उच्छब
जकौ जागै
हथळेवौ जुड़ण रै समचै
अलेखूं आंखियां दीखतौ
अलेखूं सांसां दौड़तौ
अलेखूं हाथां पसरतौ
वो उच्छब
हळवै हळवै
होय जावै
अलोप
नीं जांणू
किण रेख रै तिणै
वो
बणनै छाळौ
ऊगै
ऐन हथाळी रै
बिच्चै
म्हारी
बचियोड़ी जूंण
इणनै
फूटण सूं बचावण
करती रैवै
कळाप