ताक धिना-धिन / असंगघोष
तुमने सदियों से
बजाया
मेरे सिर पर थोपी गई
वर्जनाओं और प्रतिबंधों की तान का
तबला !
ताक धिना-धिन
ताक धिना-धिन।
इस तबले पर पड़ी
तेरी हर थाप
मेरे सिर-सीने पर
गिरे हथोड़े की चोट थी
जो मुझे सालती रही
अब तक !
मैं नहीं सीख पाया
तबले के सुर मिलाने के सिवा
तुम्हारी तैयार करी कोई भी ताल ।
अपने पुरखों की तरह
तुम्हारे तबले के लिए
जानवर की
खाल उतारने,
पकाने और
तबले पर मढ़ने में ही
लगा रहा ताज़िन्दगी
ताकि तुम बजा सको
मेरे और मेरे पुरखों के
सिर पर चढ़कर थोपे गए
प्रतिबन्धों का तबला !
ताक धिना-धिन
ताक धिना-धिन।
मेरा बेटा
बजाने लगा है
उसी तबले को
जिस पर मैनें चढ़ाई थी खाल
हथोड़ी से ठोक-पीट कर
जिसके मिलाए थे मैंने सातों सुर,
तीन ताल
सोलह मात्रा के साथ,
विलम्बित
मध्यम
द्रुत में
और हाँ
अतिद्रुत में भी
धा धिं धिं धा - धा धिं धिं धा
धा तिं तिं ता - ता धिं धिं धा।
तुझसे
मुकाबिला करने
उस्तादों की संगत-शागिर्दी कर
उसकी ज़िन्दगी की लय ताल
एक मकसद ही हो गई है
धिं-धिं धागे तिरकिट तूना
क ता धागे तिरकिट धिं-धा।
इसलिए
अब
अपनी वर्जनाओं भरी
तालों के सुर के
सारे प्रतिबन्धों को
सिरे से भूल जाओ
वरना
उसे हथोड़े से
तबले के गुट्टों को
ठोकना भी आ गया है
वो किसी दिन
तुम्हें भी ठोक कर
तुम्हारे सारे सुर मिलाएगा!
सा रे ग मा प ध नि सां।
वह बहुत कुशलता से
चाटी पर चोट मार
गुट्टों को सही जगह बैठाकर
पल्ली के सुर मिलाना भी
सीख गया है
उसका गला भी
उकेरता है सगरे सुर
सा रे ग मा प ध नि सां
सा सा रे गा मा प ध नी सा
सां नि ध प म ग रे सा।
जान लो
इस तरह
तुम्हारा वर्चस्व !
समय के साथ
अब टूट रहा है लगातार
धा ऽ ति र कि ट त क ति र कि ट धा ऽ
यह भी जान लो
ऐसे ही
किसी तबले पर खाल को मढ़ते
किसी दिन मैं
तुम्हें ही बद्दी की जगह लगा बैठूँगा
और बनाऊँगा गजरा
32, 48 नहीं पूरी 64 आँखों वाला,
हाँ, तुम्हारे बीमार भेजे को
खलबत्ते में कूट
उसकी स्याही बना
पल्ली पर लगाना भी नहीं भूलूँगा!
ताकि सुर मिलाते समय
मेरे हाथों की थाप
पड़ती रहे पल्ली पर
मैं ठोकता रहूँ
अपनी उँगलियाँ,
हथेलियाँ
विलम्बित
मध्यम
द्रुत
और
अतिद्रुत में
इस स्याही पर लगातार।
इन सब से बचना चाहते हो
तो
अब अपने पैरों में
घूँघरूँ बाँध
मेरे बेट की बजाई ताल
उसके दिए ठेके पर नाचो
ता था-थैया !
ता था-थैया !!