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तानाशाह के ख़िलाफ़ / सुखचैन / अनिल जनविजय

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तानाशाह के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए ज़रूरत होती है
एक और तानाशाह की
एक दिन जब हम तानाशाहों से निजात पा लेंगे
इतिहास तानाशाहों को रद्द कर देगा
उनके ख़िलाफ़ लड़ने वालों को भी

यह सब जानते हुए भी मैं
तानाशाहों के ख़िलाफ़ लड़ता हूँ
मैं हिटलर के ख़िलाफ़ लड़ता हुआ स्तालिन हूँ

जब मैं जम्हूरियत की अभिलाषा करता हूँ
और उसके लिए लड़ता हूँ
तब मेरे अन्दर बैठा होता है एक और तानाशाह

मेरे हमजोलियो ! मेरे वारिसो !
मैं मनुष्य की खुशियों के लिए लड़ा हूँ बार-बार
बुद्ध और गान्धी की अहिंसा मेरे मन में
फूल बनकर खिलती रही बार-बार
शान्ति और मोहब्बत की कामना करते हुए भी
तलवार के ख़िलाफ़ सोचते हुए
मुझे भी उठानी पड़ती है तलवार ।

अपने अन्दर घटित मौत को
मात देने के लिए
मैं हर दिल पर दस्तख़त करता हूँ
अपने हौसले और जाँबाज़ी से
मैं अपने दिनों को महकाता हूँ
अपनी अद्भुत्त बहादुरी से
मैं डराता हूँ तानाशाहों को, व्यभिचारियों को
नाचकर ताण्डव नाच
मेरे दोस्तो ! मेरे बेलियो !
मैंने अपना सारा बचपन और अल्हड़ उम्र
अपने पिता से नफ़रत करते हुए गुज़ारी
पिता जो शराबी-कबाबी था
उजाड़ देता था अपनी सारी कमाई
शराब की एक बोतल की ख़ातिर

मेरे हमजोलियो ! मेरे वारिसो !
मैं भयानक तनहाई में से गुज़रा हूँ
आजकल मुझे सुनाई देती है
अपनी आवाज़ में से ही अपने पिता की आवाज़
जिससे मैं तहेदिल से नफ़रत करता था
इस सब कुछ को भूलने के लिए
मैं बहुत भटका हूँ
अहिंसा और हिंसा की भूलभुलैया में
मगर फिर भी
मैं आदमी जितना कुटिल होना पसन्द नहीं करता
मैं नहीं चाहता डर के तह-दर-तह तहख़ानों में जीना

मैं जो भी हूँ हिंसक या अहिंसक
एक मासूम ख़रगोश
या फिर मनुष्यपन की दहलीज़ पर
अपना अस्तित्व हिलाता कूकर
मैं जो भी हूँ या नहीं हूँ
मैं अमर मनुष्य जितना आधुनिक और बेहूदा नहीं हूँ

मेरे हमजोलियो ! मेरे वारिसो !
मैं बुद्ध हूँ, गान्धी हूँ और गोविन्द भी
मैं हिंसा और अहिंसा का शक्तिशाली सँगम हूँ

मगर फिर भी
मैं बुरे वक़्तों में विचरता एक बुरा सपना हूँ
मुझ पर और मेरी होनी पर रहम करना ।