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तानाशाह हमारी नींद से डरता है / संजय कुमार शांडिल्य
Kavita Kosh से
तानाशाह के
खंखारने से नहीं डरते
उसके गुण गाने वाले
सबसे बुरे दिनों की कहानियाँ
सुनाते हैं
और थक जाते हैं।
हमारा जीवन
दिन भर एक यातना-शिविर है
हम दिन भर के श्रम से
जब थक जाते हैं
एक क्रांतिकारी नींद
हमें आगोश में ले लेती है।
हमारी निर्भीक नींद में
तानाशाह का कोई खलल नहीं।
हमें प्यार है पत्नी से
हमारे बच्चे हैं जिनकी
ज़रूरत है रोटियाँ
फिर भी हमारी नींद
अच्छे दिनों का ख्वाब
ढोती है
और बिना डरे
पूरा होती है।
दूसरे दिन साईकिल की घण्टियाँ
ऐलान करती गुज़रती है सड़कों से
एक पूरी नींद के बाद
फिर पूरे दिन का श्रम
तानाशाह हमारी नींद से डरता है।