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तापित हृदय-तल प्रखर अग्नि बोधो / धीरेन्द्र

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तापित हृदय-तल प्रखर अग्नि बोधो,
शापित जे यक्षक मनक भार हम्मरं
तपन ताप तापित सपत सभ हमर ई
भरोसक बीया वपन कए रहल अछि।
आशक लताकें जियाओल ओना अछि,
लागए मुदा ताश-घरकेर खेले।
खेले जँ सभटा तँ खेले रहओ ई,
दिनक दृश्य आबओ वा कारी निशाकेर
मुदा मीत हमहूँ छी जिद्दी खेलाड़ी
दाँव अन्तिम जे फेकी ओ जीते रहल अछि,
चलू ज ई जीवन लड़िते ई बीतओ,
पराश्रित अमरतासँ मरणो श्रेयष्कर।
जीयब ज जीयब धधरा भए जीयब,
धुँआइत जीवन रहल नहि अपेक्षितं