भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तार हृदय के मिलते देखा / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत बने जब प्यार मिला, तार हृदय के मिलते देखा।
झनक उठा श्वाँसों में नित, भाव मुदित मन घुलते देखा।

मीत नहीं कहना मुझको, साज बजे जब मधुरस में,
बंध हृदय प्रियवर गुनते, रात ढली मन तिरते देखा।

एक हुए हम साथ चले, तप्त हुए दिन भीगी रातें,
स्वप्न समेटे पलकों में, स्नेह दिया बन जलते देखा।

पीर अनंतर मन की जब, बोल पड़ी तन भीग लजाये,
तोड़ सदा बंधन सारे, व्योम शिखर सम गलते देखा।

याद दिलाते बीत चुके, पल नहीं पुनः जो आना है,
प्रेम लहर-सी जाग उठी, मीत हृदय भी खिलते देखा।