भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तारे नभ में अंकुरित हुए / रामकुमार वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तारे नभ में अंकुरित हुए।
जिस भाँति तुम्हारे विविध रूप
मेरे मन में संचरित हुए॥
यह आभा है क्या कुछ मलीन?
अपने संकोचन में विलीन--
पर दुग्ध-धार से किरण-गान
मुझसे मिल कर हैं स्वरित हुए॥
देखो, इतना है लघु विकास,
मेरे जीवन के आस पास।
पर सघन अँधेरे के समान ही
दूर दैन्य दुख दुरित हुए॥