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ताला / संजय शाण्डिल्य
Kavita Kosh से
कितना परेशान करता है यह ताला
जब बन्द करो
बन्द नहीं होगा
खोलो हड़बड़ी में
खुलेगा नहीं
पसीना छुड़ा देगा सबके सामने
एकदम बच्चा हो गया है यह ताला
कभी अकारण अनछुए ही
खुल जाएगा ऐसे
साफ़ हुआ हो जैसे
कोई जाला...मन का काला !