तिनतल्ला शयनयान छह खीसोंवाली पतलून / वीरेन डंगवाल
तिलतल्ला शयनयान
छह खीसों वाली पतलून
शुरूआती सर्दी की सुबह-सुबह आठ बजे
लम्बी यात्रा वाली यह ट्रेन
झाग-भरे मुंह में टूथ बुरूश भांचता
पतली गर्दन पर डाले तौलिया फिल्मी अदा से
सण्डास के बाहर आईने में निहारता
मुदित मन छवि अपनी
खुद की समझ में दुनियादारी में सिद्धहस्त हो चुका
पंजाब से लौटता वह युवा कामगार
पिचके गालों वाला
छह खीसों वाली पतलून
तिनतल्ला शयनयान
झाड़े चला जा रहा वह छोटा बच्चा छोटे से झाडू से
मूंगफली के छिक्कल पूड़ी के टुकड़े प्याले प्लास्टिक के
और मार गन्द-मन्द
डब्बे के इस छोर से झाड़ता-बटोरता बढ़ रहा आगे
खुद में ही खेदजनक कल्मश-सा वह बच्चा
बढ़ा चला आ रहा इस तिनतल्ला शयनयान में
आई फिर वह आई
तीन बरस की बेटी नटिनी की
गालों में ऊंगली से लाल रंग के टुपके
भोली प्यारी आंखों में मोटा-मोटा काजल
तीन बरस की बेटी नटिनी की आई गलियारे में
डिब्बे के इस छोर से उस छोर तक दौड़ी
अपनी मुण्डी हिलाती साभिनय
कुछ भी बोले बगैर
फिर थोड़े करतब कुछ कठिन कलाबाजियां
पीछे से ताल ठोंकती युवती अम्मा
दफ्ती के डिब्बे पर
आगे वह तीन बरस की भोली-प्यारी बेटी नटिनी की
हैरत से सभी वाह-वाह-वाह-वाह
भेजो जी, भेजो इन्हें ओलम्पिक में
तीन बरस की बेटी नटिनी की
मैंने भी सोचा कुछ रख दूं
उस पसरी हुई
लाल टुपका लगी नन्हीं गदेली पर
‘रूपिया-दो रूपिया’
पर खुदरा न था
जेब में एक हाथ डाले सहलाता किया वह बड़ा नोट
दूसरे हाथ से बच्ची के सर पर
प्रोत्साहन-भरी थपकी
जो ताल की तरह तो नहीं
मगर कुछ बजी मेरे ही भीतर
धत्-धत् ! धत्-धत्-धत्
तिनतल्ला शयनयान
छह खीसों वाली पतलून
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