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तिरंगा / पूर्णिमा वर्मन
Kavita Kosh से
गणतंत्र हर तूफ़ान से गुज़रा हुआ है
पर तिरंगा प्यार से फहरा हुआ है
ज़िन्दगी के साथ में
चलते ही जाना
हर गरीबी बेबसी में
ढूँढ पाना
अपने जीने का बहाना
जंग की कठिनाइयों से
उबर आना
फिर किसी परिणाम तक
जाने का रस्ता
एक बनाना
दर्द में विश्वास-सा ठहरा हुआ है ।
यह तिरंगा प्यार से फहरा हुआ है ।
कितना पाया और क्या खोया
इस गणित में कैसा जाना
स्वर्ण-चिड़िया उड़ गयी तो
कैसा उसका दुख मनाना
ताल दो मिलकर
कि कलयुग में
नया भारत बनाना
सिर उठाना
गर्व से जय हिन्द गाना
मुश्किलों की
धूप में ईमान-सा गहरा हुआ है ।
यह तिरंगा प्यार से फहरा हुआ है ।