भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिहत्तर / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुद्ध है
बडो भारी जुद्ध है
माणस मार विद्यावां सरजीवण हुयगी
दुस्मी गायां री जंगळ में सीवण हुयगी

किणी ढाळै आप संवेदन रुखाळोगा
या इयां ई मंचां ऊपर थूक उछाळोगा
जदकै भाखा ई
-असुद्ध है।
जुद्ध है
बडो भारी जुद्ध है।