तीन बिल्लियाँ चिलबिल्ली / भूपनारायण दीक्षित
थीं तीन बिल्लियाँ चिलबिल्ली, जो ऊधम मचाती थीं,
दिनभर म्याऊँ-म्याऊँ करके, चीजें भी खूब चुराती थीं!
बप्पा की घड़ी उठा लेतीं, दिद्दा का कलम लिया करतीं,
अम्माँ की चाभी के गुच्छे से, रस्साकशी किया करतीं!
दिन एक उठा लाईं मिलकर, वे बाबा की सुँघनीदानी,
लड़ और झगड़कर उस पर वे, करती थीं अपनी मनमानी!
इतने में डिबिया खुली और, सुँघनी सभी झट गई बिखर,
खाने की अच्छी चीज समझ, वे तीनों टूट पड़ीं उस पर!
पर ज्यों ही झरफ लगी उसकी, वे भागीं होकर बेकरार,
नथनों में हुई तिलमिलाहट, वे लगीं छींकने बार-बार!
खुजलातीं अपने थूथन को, धरती पर नाक रगड़ती थीं,
छींकों पर छींके आती थीं, वे भागी-भागी फिरती थीं!
आवाज़ तड़ातड़ उठती थी, भेजा था हुआ पिलपिला-सा,
छींकों का ताबड़ तोड़ लगा, तीनों के, विकट सिलसिला-सा!
घरवाले हड़बड़ दौड़ पड़े, समझे हालाडोला आया,
मुन्नू बोला-इन तीनों ने, चोरी करने का फल पाया!
गोदी में लेकर तीनों को, उनके मुँह पोंछे चुन्नू ने,
तब बंद हुईं उनकी छींकें, जब दूध पिलाया छुन्नू ने!