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तीन भुमन से ऐलो हे दुलहा / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

शिव कोहबर में पहुँचे और उन्होंने गौरी से बिछावन करने को कहा। पिता की संपन्नता के अभिमान में गौरी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। शिव रूठकर चल पड़े। गौरी का सारा गर्व चूर हो गया और उसने दौड़कर शिव के घोड़े की लगाम पकड़ ली। उन्होंने कहा- ‘मेरे लिए आप ही सर्वस्व हैं। आपके बिना मेरी गति कहाँ? आप मुझे किसे सौंपकर जा रहे हैं? घर में आये हुए वर को त्यागा नहीं जाता। मैं आपके साथ ही चलूँगी और सारे कष्टों को झेलूँगी।’

तीन भुमन सेॅ ऐलो हे दुलहा, ठाढ़ो<ref>खड़े हुए</ref> होइलो<ref>हुए</ref> ससुरो दुआर हे।
कहाँ गेली किए भेली कनिया गे सुहबी, कोहबर करु गे ओछाबन<ref>बिछावन</ref> हे॥1॥
हमें छेकों राजा के बेटी, पंडित के रे पुतोह हे।
हम छेकों भैया के दुलारी, हमरा सेॅ नै होइतो ओछाबन हे।
एतना बचन सुनिये दुलहा घोड़ा पीठि धरले पलान<ref>जीन; घोड़े की पीठ पर बैठने के लिए कसा जाने वाला आसन</ref> हे॥2॥
घरो सेॅ बहार होलै कनिया हे सोहबी, पकरल्ह<ref>पकड़ा</ref> घोड़ा के लगाम हे।
तोहें परभु गति छिकाह, तोहें परभु पति छिकाह।
तोहें परभु सीथि<ref>बालों को सँवारकर बनाई हुई रेखा</ref> के सेनूर हे॥3॥
तोहें परभु जैइभै<ref>जाओगे</ref> देस तिरहुत, हमरा कहिने<ref>क्यों</ref> राखै छ अपना सेॅ दूर हे।
तोहें होइभे<ref>होओगे</ref> जागी हमें होइबै जोगिनिया, दोन्हूँ<ref>दोनों</ref> मिलि रचबै संसार हे॥4॥
जाहु चतुर लोग बातेॅ बुझाबो, अइलो बर तजलो नी जाय हे।
तीन भुमन के एहो बर सुन्नर, गौरी जोखि<ref>योग्य</ref> जमाय हे॥5॥
लगहर<ref>मिट्टी का बना लंबा और गोल पात्र, जिसके ऊपर दीपक बना रहता है</ref> जोड़ल पुगहर<ref>पुरहर; द्वार-कलश</ref> जोड़ल, नेसल<ref>जलाया</ref> चारो मुख दीप हे।
कलसा के औढ़े<ref>ओट से</ref> गौरी बुझाबे, सुनु सिब बचन हमार हे॥6॥
तिल<ref>थोड़ी देर के लिए</ref> एक हे सिब भेस बदल करु, नैइहरा के लोगे नै<ref>नहीं</ref> पतिआय<ref>विश्वास</ref> हे।

शब्दार्थ
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