तीर्थाटन / शचीन्द्र भटनागर
अबकी बार हुआ मन
हम भी तीर्थाटन करने जाएँगे
गंगाजी के तट पर
होटल कई-कई मंज़िल वाले हैं
एयरकण्डीशण्ड कक्ष में
टी० वी० हर चैनल वाले हैं
हर प्रकार की सी० डी० मिलतीं
जो कुछ चाहेंगे, देखेंगे,
घूमेंगे, दृश्यों का पूरा हम आनन्द वहाँ पर लेंगे
इस अवसर का लाभ उठाकर
हल्का मन करने जाएँगे
कमरों में
हो जाता हैं उपलब्ध वहाँ पर हर सुख-साधन
एक कॉल पर
आ जाता है सामिष तथा निरामिष भोजन
मनचाहा खाने-पीने को
हम होंगे स्वच्छन्द वहाँ पर
शब्द स्पर्श रस रूप गन्ध का
होगा हर आनन्द वहाँ पर
इस जीवन पर नए सिरे से
हम मंथन करने जाएँगे
यहाँ दृष्टि में दकियानूसी लोगों की
रहता है संशय
माँ गंगा की सुखद गोद में
बिता सकेंगे जीवन निर्भय
कुछ भी पहनेंगे-ओढ़ेंगे
वहाँ न कोई बन्धन होगा
वहाँ पहुँचने पर
हम दोनों वही करेंगे जो मन होगा
मन का भार उतार
वहाँ हम मनरंजन करने जाएँगे
गंगास्नान करेंगे
भीतर वही चेतना भी भर देंगी
वह तो पतित पावनी माँ हैं
हर अपराध क्षमा कर देंगी
जब मन्दिर जाकर
श्रद्धा से शीश नवाएँगे हम दोनों
तीर्थाटन का लाभ
सहज ही फिर पा जाएँगे हम दोनों
मनरंजन के संग
सफल हम यह जीवन करने जाएँगे ।