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तुकों के खेल / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
मेल बेमेल
तुकों के खेल
जैसे भाषा के ऊंट की
नाक में नकेल !
इससे कुछ तो
बनता है
भाषा के ऊंट का सिर
जितना तानो
उतना तनता है!