भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम/मैं/वह और वह / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
तुम भी ठीक हो
मैं भी ठीक हूँ
वह भी ठीक है
फिर वह अकेला कौन है
जो कभी भी दीखता नहीं है ?
पर जिसके इशारे पर
हम सब ढाक के पत्ते की तरह
होते रहते हैं
वह आदमी
कभी क्या दीख सकेगा ?
हम कभी क्या एक हो सकेंगे ?