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तुम / जया आनंद
Kavita Kosh से
तुम पढो
तो मैं लिखूं
तुम कहो
तो मैं रचूं
सच!
तुम्ही से है
मेरा अस्तित्व
तुम्ही से बना
मेरा व्यक्तित्व
तुम हो मेरी प्रेरणा
तुम हो मेरी चेतना
तुम हो मेरी श्वांस
मेरी हर पीडा का हास
तुम हो मेरे भीतर
या बाहर कहीं
जुड़ी हूँ तुमसे
मैं वहीँ
सच!
तुम ही हो
मै नहीं मैं नहीं