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तुम आ जाओ / संजय पंकज
Kavita Kosh से
मुझ पर भारी यह घड़ी-घड़ी
तुम आ जाओ!
छोड़ छाँव की नीली छतरी
तुम आ जाओ!
यहाँ हवा में नाखून उगे
लहू लहू सब घायल-घायल
घुँघड़ू घुँघड़ू बिखर गए हैं
टूट गिरी किसलय की पायल
पलकों पर जलती लड़ी-लड़ी
तुम आ जाओ!
डाल डाल तरुवर के पीड़ित
पात पात हैं सुलगे-सुलगे
सूरज भी मुरझा झुलसा है
कदम कदम हैं सब दगे-दगे
लड़ने पर आतुर कड़ी-कड़ी
तुम आ जाओ!
जहाँ कहीं हो, जैसी भी हो
आ जाओ तुम दौड़ी-दौड़ी
मंदिर मस्जिद हिंदू मुस्लिम
अपलक लोचन हरकीपौड़ी
पावनता की अमृत सुरसरी
तुम आ जाओ!