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तुम आओ प्रसून पुराने / रामकुमार वर्मा

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तुम आओ प्रसून पुराने।
जाता है निर्दय वसन्त यह
बिना तुम्हें पहिचाने॥
जैसे संध्या गिरती है
निशि के काले गह्वर में।
अपने उज्ज्वल वर्तमान को
बिना हृदय में जाने॥
बाला के नव यौवन की
भूली स्मृति से निर्मित हो!
क्या कोकिल-स्वर किसी प्रात में
आया तुम्हें जगाने?
थे वसन्त के प्राण तुम्हीं
अब प्राणहीन वह होगा।
मुझे आज क्या विरह-व्यथा तुम
आये हो सिखलाने?
यदि कोमल उर-शैया पर तुम
सो न सके यौवन में
मैं अपना जीवन लाया हूँ
तुमसे आज मिलाने॥
तुम आओ प्रसून पुराने।